अपनी जुबा से कड़वा कोई तीर छोड़ना मत ,
फूलो के रास्तो को काँटों पे मोड़ना मत ,
छोटी सी उम्र मैं ही मेरा तजुर्बा बड़ा है ,
छोटी सी उम्र मैं ही संतो से सुना है,
जग रूठ जाये लेकिन,
जग रूठ जाये लेकिन किसी दिल को तोडना मत!!!!
ये तो पत्थर मे भी मूरत उभार देते है,
ये तो पत्थर मे भी मूरत उभार देते है,
उसमे भरते है रंग और निखार देते है,
इतने भोले है ये लड़के ये------- जानते ही नहीं,
एक मुस्कान पे जीवन गुजर देते है!
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एक मुस्कान पे जीवन गुजार देते है,
बेसुरे साज पे भी गीत गाने लगते है,
जरा सी ठेस पे आंसू बहाने लगते है,
इतने नादान है-लड़के इन्हें न तंग करो,
तेज बारिस मैं पतंगे उअने लगता है !
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हमे कुछ पता नहीं है - हम क्यों बहक रहे है,
हमे कुछ पता नहीं है - हम क्यों बहक रहे है,
राते सुलग रही है दिन भी दहक रहे है,
जब से है तुमको देखा हम इतना जानते है,
तुम भी महक रहे हो हम भी महक रहे है!
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बरसात भी नहीं पर बदल गरज रहे है,
उलझी हुई है जुल्फे और हम उलझ रहे है,
मदमस्त एक भौरा क्या चाहता कली से,
तुम भी समझ रहे हो हम बनी समझ रहे है!
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अब भी हसीन सपने आँखों मैं पल रहे है,
पलके है बंद फिर भी आंसू निकल रहे है,
नींदे कहाँ से आये बिस्तर पे कर्वेटे ही,
वहां तुम बदल रहे हो यहाँ हम बदल रहे है!
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डाली से रूठ कर के जिस दिन कली गयी थी,
बस उस ही दिन से अपनी किस्मत चली गयी थी,
अंतिम मिलन समझ कर उसे देखने गया तो,
था प्लेटफोर्म खली गाड़ी चली गयी थी!
तेरी जुल्फ मैं कसम से बदल छिपे हुए है,
मुझ जैसे जाने कितने पागल छिपे हुए है,
क्यों जुल्म ढा रही हो यह छेड़ केर तराना ,
इस भीड़ मैं बहुत से घायल छुपे हुए है,
ओं जवान धडकनों तुम मेरा सलाम लेना,
सीखा नहीं है मैंने हाथो मैं जाम लेना,
फिर भी बहुत है भटकन इस प्यार की डगर मैं,
कहीं मैं फिसल न जाऊ मेरा हाथ थाम लेना!
जब बसने का मन मैं न हो होंसला,
बे वजह घोसला मत बनाया करो,
और उठा न सको तुम गिरे फूल तो,
इस तरह डालिय मत हिलाया करो!
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वो समंदर नहीं था थे आंसू मेरे,
जिनमे तुम तेरते और नहाते रहे ,
एक हम थे की आखो की इस झील मैं,
बस किनारे पे डुबकी लगाते रहे !
मछलिय सब झुलस जाऐगी झील की,
अपना पूरा बदन मत डुबाया करो!
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वो हमे क्या संभालेंगे इस भीड़ मैं,
जिनपे अपना दुप्पटा संभालता नहीं,
कैसे मन को मैं कह दू की सु कोमल है ये,
फूल को देख केर के मचलता नहीं!
जिनके दीवारों दर है बने मोम के,
उनके घर मैं न दीपक जलाया करो !
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इन पतंगो को देखो यह उडती यहाँ,
जब कटंगी तो जाने गिरेगी कहाँ,
बहती नदियों को खुद भी पता ही नहीं,
अपने प्रियतम से जाने मिलेंगी कहाँ,
जिनके होटों पे तुम न हँसी रख सको,
उनकी आँखों मैं न आसू ना लाया करो!
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प्रेम को ढाई अक्षर का कैसे कहें,
प्रेम सागर से गहरा है नभ से बड़ा,
प्रेम होता है दीखता नहीं मगर,
प्रेम की ही धुरी पर यह जग है खड़ा,
और प्रेम के इस नगर मं जो अनजान हो,
उसको रस्ते गलत मत बताया करो!